शुक्रवार, 9 जुलाई 2021

धर्म और अधर्म क्या है ??

 धर्म और अधर्म क्या है?


धर्म की परिभाषा:-

धर्म क्या है ये तो हर कोई जानता है पर वाश्तव में धर्म की परिभाशा 

कोई नहीं जनता है


धर्म किसे कहते हैं ये किसी ने सोचा है क्या? नहीं हम मानव सिर्फ किस 

बात को धर्म कहते हैं ,दान करना ,किसी को भोजन करना यज्ञ कराना 

गंगा स्नान करना पूजा पाथ करना ।


पर मानव ये नहीं जनता कि इन सब बातों को धर्म नहीं कहते धर्म की कोई

पहचान नहीं होती किंतु धर्म बहुत कुछ दिखाता है


आप सोचते होंगे कि मैं ऐसा क्यूँ कह रहा हो की पूजा करने, गंगा स्नान करना

यज्ञ करना धर्म नहीं है ।


क्योंकि पूजा तो रावण भी करता था ,दानवीर तो कर्ण भी था यज्ञ तो बली 

ने भी किया तो क्या वे धर्म के पथ पर चल रहे थे।




भगवान श्री कृष्णा ने कहा है कि अगर आप किसी का भी ह्रदय दुःखी करते

हो तो आप धर्म नहीं अधर्म की मार्ग की ओर हो

किसी को लूट गलत तरीके से आप धन इकठ्ठा करके अगर दान करते हो

तो वो धर्म नहीं है ।

किसी को दुःखी करके अगर आप गंगा स्नान करते है तो आप का स्नान करने  धर्म नहीं है और न ही आपका पाप धुलता है।


धर्म वो है जब आपसे कोई दुःखी न हो ,आप से सब प्रेम करें,आप सत्य के

मार्ग पर चलें किसी को भी पीड़ा न पहुँचाए जिससे की वो आपको हाय दे

जहाँ तक हो आपसे आप सबको खुश रखे और खुद के ह्रदय को भी  खुश 

रखेंगे तभी आप धर्मात्मा कहलाओगे 


भगवान श्री कृष्णा ने बहुत ही सुंदर बात कहीं है कि हे मानव तू सब को 

खुश रखने के प्रयास में खुद को दुःखी मत कर वरना तेरा ह्रदय तुझे कभी

क्षमा नहीं करेगा और तू धर्मात्मा नहीं कहलायेगा


अधर्म क्या है?

अधर्म नाम सुनकर ही सब को पता चल जाता है कि क्या है?

किंतु मानव जानते हुए भी इसे अन्देखा कर देता है क्योंकि उसे लगता है 

कि कोई नहीं जनता।

भगवान   श्री कृष्णा ने कहा है कि धर्म की रक्षा न करना ,धर्म का साथ न देना ही अधर्म अन्याय और अत्यचार है ।



भगवान श्री कृष्णा ने कहा है कि यदि धर्म की रक्षा के लिए आपको अशत्य

का सहारा लेना पड़े तो लो क्योंकि वो मिथ्या झूंठ अशत्य  धर्म के लिए है


इसलिए धर्म की रक्षा के लिये झूंठ भी बोलो 

अतः संसार में धर्म से बड़ा कोई नहीं हैं

धर्मो रक्षति रक्षिता: 

अर्थात तुम धर्म की रक्षा करो ।

धर्म तुम्हारी रक्षा करेगा ।।



श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वाशुदेवा

श्री कृष्णा गोविन्द हरे मुरारी हे नाथ नारायण वाशुदेवा

हरे कृष्णा हरे कृष्णा कृष्णा कृष्णा हरे हरे।

हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।




 

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